छीन ले जो निवाला गरीबों का

छीन ले जो निवाला,
गरीबों का भी,
ऐसा शासन,
प्रशासन नहीं चाहिए,
राम और श्याम की,
है ज़रूरत यहाँ पर,
हमें कंस रावण नहीं चाहिए।

भाई-भाई के हुए,
हैं दुश्मन सदा,
हाथ की वो,
लकीरें मिटा ना सके,
युद्ध में साथ,
भैया का दे ना सका,
ऐसा भाई,
विभीषण नहीं चाहिए।

नाते रिश्ते की,
दीवार मजबूत है,
तोड़ने से भी टूटी,
नहीं आज तक,
भाभी देवर का,
रिश्ता जो कलंकित करें,
ऐसा देवर,
दुर्योधन नहीं चाहिए।

देश और धर्म पै,
लोग मरते रहें,
सीमा पर ये लहू,
भी टपकते रहें,
कोई जयचंद बने,
ये वतन के लिए,
धरती माता का,
ऐसा ललन चाहिए।

सजनी साजन का,
रिश्ता है पावन सदा,
चंद दौलत की,
खातिर बिगड़ता नहीं,
जो बिगाड़े किशन,
ऐसे रिश्तों को भी,
ऐसी सजनी का,
साजन नहीं चाहिए।

गायक – अजय बृजवासी
लेखक – किशन शर्मा

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