ले माला रोते हैं,
कुछ जाप के चरणों में,
सब तीरथ होते हैं,
मां बाप के चरणों में।
है बाप दुखी घर में,
भूखी रो रही अम्मा,
बेटा तो लगाय रयौ,
गिरिराज की परिकम्मा,
क्यों पुण्य को खोते हैं,
उसे पाप के चरणों में।
श्री राम की मर्यादा के,
स्तंभ न हिलते हैं,
सरवन जैसे बेटा,
बड़े भाग्य से मिलते हैं,
क्यों वरदान को खोते हैं,
अभिशाप के चरणों में।
मंदिर अंदर बैठा,
कोई देव न दूजा है,
उसने भी तो की है,
मां-बाप की पूजा है,
हम नयन भिगोते हैं,
लाला आपके चरणों में।
गायक – अजय बृजवासी
लेखक – रामवीर सिंह